प्रकृति की गोद में बसा एक प्रसिद्ध मंदिर है ‘महासू देवता’। माना जाता है कि जो भी यहां सच्चे दिल से कुछ मांगता है कि महासू देवता उसकी मुराद पूरी करते हैं।
दिलचस्प है कि यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन को ओर से नमक भेंट किया जाता है। मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए यह मंदिर देहरादून से 190 किमी और मसूरी से 156 किमी दूर है। यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तकट पर स्थित है।
गर्भ गृह में पानी की एक धारा का रहस्य
महासू देवता के मंदिर के गर्भ गृह में भक्तों का जाना मना है। केवल मंदिर का पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। यह बात आज भी रहस्य है। मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है।
मंदिर के गर्भ गृह में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है, कहां से निकलती है यह अज्ञात है।
दरअसल ‘महासू देवता’ एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं।
न्यायालय भी माना जाता है इस मंदिर को
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता की पूजा होती है।
इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। वर्तमान में महासू देवता के भक्त मन्दिर में न्याय की गुहार करते हैं जो उनकी पूरी होती है।
महासू ने जीता था हनोल का मंदिर
यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया था। वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षण में है। महासू देवता भगवान भोलेनाथ के रूप हैं। मान्यता भी है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था। महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ईष्ट देव हैं।
किवदंती है कि महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। पांडव लाक्षा ग्रह( लाख का महल) से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है।