ध्यान या मेडिटेशन (Meditation) का लक्ष्य, एकाग्रता और मन की शान्ति को प्राप्त करना है, और इस प्रकार अंततः इसका उद्देश्य आत्म-चेतना और आंतरिक शांति के एक ऊँचे स्तर पर चढ़ना है। यह जानकारी आपके लिए कुछ आश्चर्यजनक होगी कि ध्यान आप कहीं भी और किसी भी समय कर सकते हैं, अपने आपको शांति तथा सौम्यता की ओर पहुंचा सकते हैं, इस दौरान इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप के आसपास क्या हो रहा है। यह लेख ध्यान की मूल बातों से परिचय कराते हुए ज्ञान और सुख की ओर यात्रा शुरू करने में आपको सक्षम बनाएगा।
एक शांत वातावरण का चुनाव कीजिए : ध्यान का अभ्यास किसी ऐसे परिवेश में करना चाहिए जो शोर-शराबे रहित और शांतिदायी हो। यह विशेष रूप से आपको अपने लक्ष्यों पर केंद्रित करने में समर्थ बनाएगा और आपके मन को भटकाने वाली बाहरी चीजों की बौछार से बचायेगा। एक ऐसा स्थान तलाश करने की कोशिश कीजिए जहां ध्यान के क्षणों में आपको कोई बाहरी बाधा नहीं पहुँचे – भले ही यह पांच मिनट तक चले या पच्चीस मिनट। जरूरी नहीं कि यह स्थान बहुत बड़ा हो – चहलकदमी की जगह का या यहाँ तक कि दफ्तर का भी, अगर उसमें एकांत का अवसर हो, तो ध्यान के लिए उपयोग किया जा सकता है।
जो लोग ध्यान करने में अभी बिल्कुल नए हैं, उनके लिए किसी भी बाहरी भटकाव से बचना विशेष जरूरी है। टीवी, फोन या शोर-शराबा करने वाले दूसरे उपकरणों को बंद कर दीजिए।
यदि संगीत बजाना हो, तो शांत, आवृति वाली कोमल धुनों का चयन कीजिए जो आपकी एकाग्रता को न तोड़ें। दूसरा उपाय यह है, कि पानी के एक छोटे फव्वारे को चालू कर लें – बहते पानी की संगीतमय ध्वनि अत्यंत शांतिदायी हो सकती है।
यह जान लीजिए कि ध्यान की जगह पूरी तरह निःशब्द न हो, इसलिए earplugs की कोई ज़रूरत नहीं है। घास काटने की मशीन के चलने या बाहर कुत्ते के भौंकने की आवाजें प्रभावी ध्यान में रुकावट नहीं बनेंगी। इसके विपरीत, इन आवाजों को अपने विचारों पर हावी न होने देना और इनकी ओर से सजग रहना एक सफल ध्यान का महत्वपूर्ण लक्षण है।
बहुत से लोगों के लिए खुले स्थानों पर ध्यान करना कारगर होता है। अगर आप एक भीड़-भाड़ वाली सड़क या शोर-शराबा करने वाली चीजों के नजदीक न बैठें हों, तो किसी पेड़ के नीचे या बगीचे के अपने पसंदीदा कोने में हरी-भरी घास पर बैठकर भी शांति पा सकते हैं।
आरामदेह कपड़े पहनिए : ध्यान के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है, मन को शांत करना और बाहरी कारकों को रोकना। अपने टाइट और बंदिश डालने वाले कपड़ों की वजह से यदि शारीरिक रूप से आप असहज महसूस कर रहे हैं, तो यह बड़ा मुश्किल हो सकता है। ध्यान के अभ्यास के दौरान ढीले कपड़े पहनिये और अपने जूते को उतारना मत भूलिए।
अगर एक ठंडी जगह पर ध्यान करना है, तो स्वेटर या कार्डिगन जरूर पहनें। ऐसा न करने पर ठंड की अनुभूति आपके विचार-प्रवाह को भंग कर देगी और आप अपने अभ्यास को अल्प समय में ही रोक देने पर मजबूर हो जाएंगे।
अगर कार्यालय में हैं, या किसी ऐसी जगह पर जहां कपड़े बदलना आसान हो, तो अपने को अधिक से अधिक सहज और आराम से रखने में कोई कसर मत छोड़िये। जूते और जैकेट उतार दीजिए, शर्ट या ब्लाउज के कॉलर को खुला छोड़ दीजिए और बेल्ट को भी उतार दीजिए।
निर्धारित कीजिए कि कितनी देर तक ध्यान करना है : आरंभ करने से पहले यह तय करना चाहिए कि आपको कितनी देर ध्यान करना है। कई अनुभवी साधक एक दिन में दो बार बीस मिनट के सत्र पर जोर देते हैं, हालाँकि नौसिखिए के तौर पर आप दिन में एक बार पांच मिनट के ध्यान से शुरुआत कर सकते हैं।
आपको हर दिन एक ही समय में ध्यान करने का भी प्रयास करना चाहिए – चाहे वह आपकी सुबह के शुरुआती 15 मिनट हों, या लंच के समय के पांच मिनट। समय जो भी चुनें, ध्यान को अपनी दैनिक दिनचर्या का अटूट अंग बनाने का प्रयास करें। एक निश्चित समय-सीमा तय कर लेने के बाद उस पर अड़े रहिये। ‘नहीं हो पा रहा है’ – ऐसे किसी भी नकारात्मक आभास के कारण इसे बिल्कुल मत छोड़िये – ध्यान में अभ्यास और सफलता हासिल करने में थोड़ा समय लगेगा। इस समय सबसे महत्वपूर्ण यह है, कि कोशिश जारी रखी जाए।
आप समय पर जरूर निगाह रखना चाहेंगे, फिर भी बार-बार घड़ी देखना आपको कोई ख़ास फायदा नहीं पहुंचाएगा। अभ्यास ख़त्म होने पर अपने आपको सजग करने के लिए एक मधुर अलार्म लगाने के बारे में सोचिये, अन्यथा अपने अभ्यास के समापन को एक निश्चित घटना से जोड़ दीजिए – जैसे अपने साथी के बिस्तर से उठने, या सूरज की किरणों के दीवार पर एक ख़ास स्थान से टकराना आदि।
स्ट्रेचनिंग कीजिए : ध्यान में एक निश्चित अवधि के लिए एक ही स्थान पर बैठे रहना पड़ता है, अतः इसे शुरू करने से पहले शरीर में किसी भी तनाव या जकड़न को कम कर लेना जरूरी है। एक-दो मिनट अंगों को लचकाने और फैलाने वाले व्यायाम (Stretching) कर लेना शरीर को ढीला करता है, देह और मन दोनों को ध्यान के लिए उपयुक्त रूप से तैयार करने में मदद कर सकता है। यह आपके मन को ध्यान की एकाग्रता से हटकर शरीर के किसी दुखते बिंदु पर जाने से भी रोकेगा।
यदि आप कंप्यूटर के सामने बैठे हों, तो ख़ास तौर पर गर्दन और कंधों की स्ट्रेचिंग कीजिए, और पीठ के निचले हिस्से को मत भूलिए। पद्मासन में ध्यान करने के लिए पैरों को, विशेषतः जांघ के भीतरी भाग को फैलाना और खींच देना सहायक हो सकता है।
अगर आपको स्ट्रेचनिंग करना पहले से नहीं आता है तो मेडिटेशन करने से पहले अलग अलग स्ट्रेचनिंग की टेक्निक सीखने का प्रयास करें। कई मेडिटेशन एक्सपर्ट्स मेडिटेशन शुरू करने से पहले योगा स्ट्रेचनिंग करने की सलाह देते हैं।
एक आरामदेह मुद्रा में बैठिये : जैसा कि ऊपर कहा गया है, ध्यान के वक्त शारीरिक रूप से आरामदेह स्थिति में होना बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए अपने लिए सबसे अच्छी मुद्रा को ढूँढ़ लेना अति आवश्यक है। परंपरागत रूप से, जमीन पर एक दरी या आसन पर, पद्मासन या अर्ध पद्मासन की मुद्रा में बैठकर ध्यान का अभ्यास किया जाता है। पैर, कमर, और पीठ के निचले भाग जिन लोगों के बहुत लचीले नहीं होंगे, उनके लिए पद्मासन की मुद्रा पीठ के निचले भाग में जबरदस्त खिंचाव पैदा करेगी, और धड़ को रीढ़ की हड्डी के साथ संतुलित रखने से रोकेगी। एक ऐसी मुद्रा चुनें जो आपको लंबे समय तक सीधे और संतुलित बैठे रहने में सहायक हो।
लेकिन, आप एक दरी, कुर्सी, या ध्यान की बेंच पर पैरों को बिना एक-दूसरे पर चढ़ाये भी बैठ सकते हैं। आपके कूल्हे (pelvis) आगे की ओर पर्याप्त रूप से झुके हों, जिससे कि मेरूदण्ड नितम्ब की दोनों हड्डियों पर संतुलित खड़ा रहे। अपने कूल्हे को सटीक मुद्रा में झुकाने के लिए एक मोटी गद्दी के आगे के किनारे पर बैठ जाइए, या कुर्सी के पिछले पायों के नीचे 3-4 इंच मोटी चीज रख दीजिए। ध्यान के लिए बनाई जाने वाली बेंच आमतौर पर थोड़ी झुकी हुई सीट वाली होती हैं। अगर आपकी कुर्सी वैसी विशिष्ट नहीं है, तो इसे झुकाने के लिए इसके नीचे आधे से एक इंच तक की मोटाई वाली कोई चीज रख दीजिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप आराम से हो, शिथिल हों, और आपका धड़ संतुलित हो जिससे कमर से ऊपर का सारा भार आपकी धड़ पर पड़े। अपने कूल्हों को आगे की ओर झुकाइये। फिर, रीढ़ में हड्डियों को सीधा कीजिए जिससे वे एक-दूसरे के ऊपर संतुलित रूप से कायम रहें और धड़,गर्दन तथा सिर का पूरा वजन आराम से लिए रह सकें, ताकि अपने को संतुलित करने में आपको मामूली प्रयत्न करना पड़े। देह में जहां कहीं भी तनाव महसूस हो, उस क्षेत्र को ढीला छोड़ दीजिए। अगर अपनी मुद्रा को तोड़े बिना इसे ढीला करने में आप निहायत असमर्थ हों तो अपने मुद्रा में किसी असंतुलन की जाँच कीजिए और अपने धड़ को फिर से सामंजस्य में लाने की कोशिश कीजिए, जिससे शरीर का वह क्षेत्र आराम पा सके।
ध्यान की पारंपरिक मुद्रा में दोनों हथेलियों को ऊपर की ओर करके दायी हथेली को बायीं पर रखकर इन्हें गोद में रख लिया जाता है। हालांकि, चाहे तो आप हाथों को आराम से अपने घुटनों पर भी रख सकते हैं, या इन्हें दोनों बगलों से लटकता हुआ भी छोड़ सकते हैं।
आँखें बंद कर लीजिए : आँखें बंद करके या इन्हें खोलकर भी ध्यान किया जा सकता है, लेकिन एक नौसिखिए के रूप में सबसे अच्छा तो यही होगा कि आँखें बंद करके ध्यान का अभ्यास किया जाए। यह तमाम बाहरी दृश्यों से, उद्दीपनों से, आपका ध्यान हटा देगा और जब आप अपने चित को शांत करने में पूरी तरह से एकाग्र हो रहे होंगे, उस समय आपको विचलित होने से रोकेगा।
एकबार ध्यान में अभ्यस्त हो जाने के बाद, आप अपनी आँखें खुली रख कर भी अभ्यास कर सकते हैं। यह उन मामलों में बड़ा सहायक हो सकता है, अगर आप उनींदा महसूस कर रहे हों, या आँखें बंद करके एकाग्रचित होने में आपको कड़ी मेहनत करनी पड़ रही हो, या फिर मन में परेशान करने वाले चित्र दिखाई पड़ रहे हों (एक छोटे अनुपात में लोगों के साथ ऐसा अक्सर होता है)।
अगर अपनी आँखें बंद किये हुए हैं, तो उन्हें “कोमल” – रखना चहिये, अर्थात किसी ख़ास चीज पर उन्हें केन्द्रित नहीं रखना है।
हालांकि, आपको एक ट्रान्स जैसी स्थिति में भी नहीं जाना है। आपका लक्ष्य तो आराम से लेकिन चोकन्ना होकर रहना है।
श्वसन (Breathing) का अनुसरण कीजिए : ध्यान की तकनीकों में सबसे बुनियादी और सार्वभौमिक, श्वसन-ध्यान से अपने अभ्यास की शुरुआत करना सबसे अच्छा है। अपनी नाभि के ऊपर किसी बिंदु को चुन लीजिए और मन को उसी स्थान पर टिकाइए। सांस को अंदर और बाहर की ओर खींचने और छोड़ने के दौरान पेट के उठने और गिरने के क्रम पर ध्यान दीजिए। अपनी सांस लेने के पैटर्न को बदलने का कोई सचेत प्रयास मत कीजिए, सिर्फ सामान्य ढंग से सांस लेते रहिये।
सिर्फ और सिर्फ अपनी साँस पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कीजिए। अपनी साँस के बारे में मत सोचिये या इसपर कोई निर्णय देने मत जाइए (उदाहरण के लिए, यह सांस पिछली सांस से छोटी थी), सिर्फ इसे संज्ञान में रखने और इस ओर से सजग रहने का प्रयास कीजिए।
कुछ मनोचित्र (mental image) जो आपकी मदद कर सकते हैं, वे हैं: आपकी नाभि के ऊपर किसी बिंदु पर रखा एक सिक्का जो सांस के फूलने और पिचकने के साथ उठता गिरता है; समंदर में लहरों पर तैरते एक चिन्ह की कल्पना जो सांस के आरोह-अवरोह के साथ लहरों पर उठ-गिर रहा हो, या अपने पेट पर कमल के एक फूल की कल्पना जिसकी पंखुड़ियाँ हर सांस के साथ फहरा रही हैं।
आपका मन भटकने लगे तो चिंता मत कीजिए – आप अभी शुरुआत कर रहे हैं, और हर चीज की तरह ध्यान भी अभ्यास की मांग करता है। अपनी सांस पर दोबारा ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास कीजिए और अन्य कुछ भी सोचने की कोशिश मत कीजिए। इधर-उधर की बड़बड़ को भुला दीजिए और अपने दिमाग को स्वच्छ और पारदर्शी रखने का प्रयास कीजिए।
मन को साफ़ करें :
ध्यान करने के लिए, आपको एक ही चीज पर ज्यादा से ज्यादा एकाग्रचित होना है। अगर आप नौसिखिए हैं तो एक ही चीज पर ध्यान केंद्रित करना आपकी मदद करेगा और रोजाना ध्यान करने वाले की तरह पूरी तरह से दिमाग को साफ करने में मदद करेगा।
एक मंत्र दोहराइये : ध्यान का एक दूसरा रूप मंत्र-ध्यान है, जिसमें एक मंत्र (एक ध्वनि, शब्द या वाक्य) को बार-बार दोहराना होता है, जब तक कि आप मन को नीरव करके एक गहन ध्यानावस्था में न पहुँच जाएँ। याद रखने लायक आप जो भी चुनेंगे वही मन्त्र है।
शुरुआत के लिए कुछ अच्छे मन्त्रों में एक, शांति, कोमल, विश्राम, और मौन जैसे शब्द शामिल हैं। यदि आप अधिक पारंपरिक मंत्र का उपयोग करना चाहते हैं, तो “ओम” शब्द को ले सकते हैं, जो सर्वव्यापी चेतना का प्रतीक है, या फिर वाक्यांश “सत्, चित, आनंद” को, जिसका अर्थ “अस्तित्व, चेतना, परमानंद” है।
संस्कृत में, मंत्र शब्द का अर्थ “मन का उपकरण” है। मंत्र वह साधन है जो मन में कंपन पैदा करता है और आपको सोच-प्रवाह से अलग करके चेतना के गहन प्रदेश में ले जाता है।
चुपचाप मन्त्र को बार-बार दोहराते जाइए, और शब्द या वाक्य को पूरे मन-मस्तिष्क से गूँजने दीजिए। मन भटकने लगे तो परेशान मत होइए, सिर्फ अपने ध्यान को पुनः एकाग्र कीजिए और शब्द को बार-बार दोहराने में जुट जाइए।
जब आप अनुभव और चेतना के गहरे धरातल की ओर प्रवेश कर जाएँ तो फिर मंत्र को दोहराना अनावश्यक लग सकता है।
एक साधारण सी दृश्यमान वस्तु पर ध्यान केन्द्रित कीजिए: मंत्र का उपयोग करने की तरह ही, अपने मन को भरने के लिए एक मामूली सी दृश्यमान वस्तु का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, इसके जरिये गहरी चेतना के स्तर तक पहुंच सकते हैं। यह खुली आंखों से ध्यान करने का ही एक रूप है, जो कुछ लोगों को आसान लग सकता है, क्योंकि इसमें दृष्टि को टिकाने के लिए एक बिंदु सामने रहता है।
यह दृश्यमान वस्तु आप जो चाहें वही हो सकती है, हालाँकि कई लोगों को जलती मोमबत्ती की लौ विशेष रूप से सुखद जान पड़ती है। अन्य संभावित वस्तुओं में क्रिस्टल, फूल, और बुद्ध की तरह दिव्य मूर्तियां या तस्वीरें हो सकती हैं।
वस्तु को अपनी आँखों की ऊँचाई पर रखें, ताकि इसे देखने में अपने सिर और गर्दन पर जोर न डाला जाए। इस पर टकटकी लगाइए, जब तक कि परिधीय-दृष्टि (peripheral vision) धुंधली न पड़ जाए और आपकी पूरी दृष्टि को वह वस्तु एकाग्र न कर ले।
वस्तु पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित हो जाने के बाद, जब दूसरा कोई उद्दीपन आपके मस्तिष्क तक न पहुंचे, तो आप अपार शांति-भाव महसूस करेंगे।
अन्तःदर्शन का अभ्यास: अन्तःदर्शन ध्यान की ही एक अन्य लोकप्रिय तकनीक है, जिसमें मन के भीतर एक शांतिपूर्ण क्षेत्र का निर्माण करके उसका अन्वेषण किया जाता है, जब तक कि आप पूर्ण शांति की एक अवस्था मंभ न पहुँच जाएँ। मन में निर्मित यह स्थान आपकी पसंद के अनुरूप कुछ भी हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से कोई वास्तविक स्थान न होकर आपके लिए बिल्कुल अनोखा और व्यक्तिगत होना चाहिए।
दर्शन किया जाने वाला आपका यह काल्पनिक स्थान थोड़ा गर्म, रेतीला समुद्र-तट, फूल-भरे घास का मैदान, एक नीरव वन यहाँ तक कि जलते अलाव वाला एक आरामदायक कमरा भी हो सकता है। आप जो भी स्थान चुनें, उसे अपना अभयारण्य बनने दीजिए।
एक बार जब आप अपने अभयारण्य में प्रवेश कर चुके हैं, तो उसमें विचरण कीजिए। अपने आसपास की चीजों की “कल्पना” जकरने की जरूरत नहीं है, वे वहाँ पहले से ही हैं। उन्हें अपने मन में सबसे आगे आने दीजिए।
अपने भीतर के उस स्थान के दृश्यों, आवाजों और खुशबू को महसूस कीजिए – चेहरे पर ताजी हवा का स्पर्श, या शरीर में गरमाहट लाती उष्मा को महसूस कीजिए। इस परिवेश का आनंद लीजिए, इसे स्वाभाविक रूप से विस्तृत, और विस्तृत, और अधिक ठोस होने दीजिए। जब आप प्रस्थान के लिए तैयार हों तो कुछ गहरी साँसें लीजिए, और फिर आँखें खोल दीजिए।
ध्यान रहे कि अगली बार अन्तःदर्शन के ध्यान के पलों में आप वापस इस जगह पर आ सकते हैं, या एक नई जगह की भी कल्पना कर सकते हैं। आप जो भी स्थान बनायेंगे वह आपके लिए अनोखा और निजी व्यक्तित्व का प्रतिबिंब होगा।
आत्म-काया निरीक्षण कीजिए : आत्म काया निरीक्षण में बारी-बारी से अपनी देह के प्रत्येक अंग पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, और उसे सजग रूप से ढीला छोड़ दिया जाता है। ध्यान की यह एक आसान तकनीक है, जिसमें आप शरीर को आराम देते-देते मन को विश्राम की अवस्था में ले जाते है।
आँखें बंद करके अपने शरीर पर एक आरम्भ बिंदु चुन लीजिए, आमतौर पर यह पाँव का अंगूठा होता है। अपने पैर की उंगलियों में जो भी संवेदना आपको महसूस हो रही हो उस पर ध्यान केन्द्रित कीजिए। अपनी देह में किसी भी सिकुड़ी हुई मांसपेशी को ढीला करने और इसके तनाव या जकड़न को दूर करने का एक सचेत प्रयास कर सकते हैं। पैर की उंगलियों के पूरी तरह से आराम की अवस्था में आ जाने के बाद अपने पैरों की और बढ़िये और विश्राम की उसी तकनीक को दोहराइए।
अपने बाकी शरीर की ओर बढ़िये, पाँव से होकर पिंडली, घुटने, जांघों, कूल्हों, कमर, पेट, छाती, पीठ, कंधे, हाथ, उंगलियों, गर्दन, चेहरा, कान और अपने सिर के ऊपरी भाग तक जाइए। इसमें जितना भी समय लगे, दीजिए।
शरीर के प्रत्येक अंग को विश्राम में ले जाने के बाद, अब समग्र शरीर पर ध्यान केंद्रित कीजिए और शांति और आराम की सुखद अनुभूति का आनंद लीजिए। ध्यान के अभ्यास से बाहर आने से पहले कुछ मिनटों के लिए अपनी साँसों पर मन को एकाग्रचित कीजिए।
ह्रदय-चक्र ध्यान को आजमाइए : ह्रदय-चक्र शरीर के भीतर स्थित सात चक्रों या ऊर्जा-केन्द्रों से एक है। ह्रदय-चक्र छाती के बीचोंबीच स्थित है और प्रेम, करुणा, शांति और सदभाव से जुड़ा हुआ है। ह्रदय-चक्र ध्यान में इन भावनाओं के संसर्ग में आकर उन्हें संसार के लिए प्रवाहित किया जाता है।
इसे शुरू करने के लिए, अपनी आँखें बंद कर लीजिए और हाथों की हथेलियों को एक-दूसरे से रगड़ कर गर्मी और ऊर्जा पैदा कीजिए। फिर, अपने दाहिने हाथ को छाती के बीच, ह्रदय-चक्र के ऊपर रखिये, और बाएं हाथ को उसके ऊपर रख लीजिए।
एक गहरी सांस लें और जैसे-जैसे साँस छोड़ें, “याम” शब्द का उच्चारण करें, जो कि ह्रदय-चक्र के कम्पन से जुड़ा हुआ शब्द है। इसे करते हुए, अपने सीने और हथेलियों से विकिरण की शक्ल में एक चमकती हुई हरे रंग की ऊर्जा की कल्पना कीजिए।
हरे रंग की यह ऊर्जा है; प्रेम, जीवन और अन्य जो भी सकारात्मक भावनायें उस पल आप महसूस कर रहे हों सब। जब आप तैयार हो जाएँ, सीने से अपने हाथ हटा लीजिए और संसार में अपने आत्मीय-परिजनों तक हथेलियों से ऊर्जा प्रसारित होने दीजिए।
अंदर से अपने शरीर को महसूस कीजिए। क्या आप अपनी देह में उर्जा के एक फील्ड को महसूस कर रहे हैं, ख़ासकर बाहें, और पैर में? नहीं महसूस कर रहे हैं तो कोई बात नहीं। लेकिन सोचिये; हम शरीर के विभिन्न अंगों को कैसे गतिशील रखने में सक्षम हैं? यह हमारे शरीर में बहता ऊर्जा क्षेत्र ही है। ऊर्जा-फील्ड पर ध्यान केंद्रित करना न केवल आपको वर्तमान में रखेगा बल्कि यह आपको अपने स्वत्व और अपने भीतर जीवन के प्रवाह से भी जुड़ने में मदद करेगा।
सचल ध्यान को आजमाइए : ध्यान का एक वैकल्पिक रूप चलते हुए ध्यान करना है जिसमें पैरों की गति का अनुसरण करते हुए शरीर और पृथ्वी के संयोग के प्रति सचेतहोना होता है। यदि आपकी योजना लंबे समय के लिए बैठेकर ध्यान करने की है, तो उसमें सचल ध्यान को शामिल कर लेने का ख़याल अच्छा रहेगा।
सचल ध्यान का अभ्यास करने के लिए एक शांत स्थान चुनें, जहाँ भटकाव के कम से कम साधन हों। इस स्थान का बहुत बड़ा होना जरूरी नहीं, लेकिन मुड़ने से पहले एक सीध में कम से कम सात कदम चल पाने भर की जगह होनी चाहिए। संभव हो तो जूते उतार दें।
आगे की ओर एकटक देखती आपकी आँखों के साथ आपका सिर सीध में रहे और हाथ आपके आगे की ओर एज-दूसरे से बंधे हों। धीमी लेकिन संतुलित चाल से दाहिने पैर को एक कदम आगे बढ़ाइए। पैर में किसी संवेदना या अहसास को भूल जाइए और सिर्फ गति पर अपना ध्यान केन्द्रित कीजिए। एक कदम चलने के बाद एक पल रुकिए। एक समय में सिर्फ एक ही कदम उठाना चाहिए।
अपने चलने के स्थान के अंतिम छोर पर पहुंचकर, दोनों क़दमों को रोक दीजिए। फिर दायें पैर पर टिककर मुड़ जाइए, अब वैसे ही धीमे लेकिन सधे हुए क़दमों से विपरीत दिशा में चलना जारी रखिये।
सचल ध्यान का अभ्यास करते समय पैरों की गति पर ध्यान केंद्रित कीजिए, ठीक उसी तरह जैसे श्वसन ध्यान में साँसों के चढ़ाव-उतार पर केन्द्रित किया जाता है। अपने दिमाग को साफ करने की कोशिश कीजिए और पैर और नीचे पृथ्वी के बीच के संयोग पर एकाग्रचित होने का प्रयास कीजिए।
रोजमर्रा की जिंदगी में मानसिक पूर्णता का अभ्यास कीजिए : अभ्यास के परिभाषित सत्रों तक ही ध्यान को सीमित नहीं रखना चाहिए, रोजमर्रा के जीवन में पूरे दिन भी आप ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, तनाव के क्षणों में, कुछ सेकंड तक अपने श्वास पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने और किसी भी नकारात्मक विचार या भावना से अपने दिमाग को मुक्त करने की कोशिश कीजिए।
मानसिक परिपूर्णता का अभ्यास आप खाना खाते समय भोजन के प्रति और इसे खाने से होने वाली संवेदना के अनुभव से सचेत होकर भी कर सकते हैं।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप दैनिक जीवन में कौन से कार्य कर रहे हैं, कंप्यूटर के आगे बैठे हैं या फर्श पर झाडू लगा रहे हैं, अपने शरीर की गतिविधियों के प्रति अधिक जागरूक होने की कोशिश कीजिए और यह कि वर्तमान में आप कैसा महसूस कर रहे हैं। यह मानसिक पूर्णता के साथ जीना है।
स्वस्थ जीवन शैली अपनायें : एक स्वस्थ जीवनशैली अधिक प्रभावी और लाभप्रद ध्यान में योगदान कर सकती है, इसलिए स्वस्थ खाने, व्यायाम और अच्छी और पर्याप्त नींद लेने की कोशिश करें। ध्यान से पहले बहुत ज्यादा टीवी देखने, शराब पीने या धूम्रपान से बचना चाहिए, क्योंकि ये गतिविधियाँ दिमाग को सुन्न करके आवश्यक एकाग्रता के स्तर को प्राप्त करने से आपको रोकती हैं।
आध्यात्मिक ग्रन्थ पढ़िए: हालांकि सबके मामले में यह लागू नहीं होता, लेकिन कुछ लोगों को ध्यान की समझ, अंदरूनी शांति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा देने में आध्यात्मिक पुस्तकें और पवित्र ग्रन्थ मदद कर सकते हैं।
शुरुआत करने के लिए जो अच्छी किताबें हो सकती हैं उनमें ये नाम लिए जा सकते हैं; दलाई लामा की A Profound Mind: Cultivating Wisdom in Everyday Life, जेन रॉबर्ट्स की The Nature of Personal Reality, एश्कार्ट टॉले (Eckhart tolle) की “A New Earth” और डॉनल्ड ऑल्टमैन की One-Minute Mindfulness।
अगर आप चाहें तो अपने अनुसार किसी भी आध्यात्मिक या पवित्र ग्रंथ से एक मूल्यवान अंश ले सकते हैं, और अगले ध्यान-सत्र के दौरान एकाग्रचित होकर उसका मनन कर सकते हैं।
ध्यान-प्रशिक्षण की कक्षा में शामिल होइये : घर में ध्यान कैसे शुरू किया जाए, इस बारे में आप निश्चित नहीं हो पा रहे हैं तो एक अनुभवी शिक्षक की निगरानी में किसी निर्देशित कक्षा में प्रशिक्षण लेना अच्छा रहेगा।
ध्यान की कक्षाओं में प्रायः सभी प्रकार का ध्यान होता है, लेकिन आप एक आध्यात्मिक स्थल पर भी जा सकते हैं, जहां ध्यान की सभी विधियां दिखाई पड़ेंगी और आप यह जान पायेंगे कि आपके लिए सबसे उपयुक्त कौन सा रहेगा।
प्रतिदिन एक निश्चित समय में ध्यान का अभ्यास करने की कोशिश कीजिए: इससे जल्द ही ध्यान आपकी दिनचर्या का अंग बन जाएगा, और आप अधिक गहराई और व्यापकता में इसके फायदों को महसूस कर पायेंगे।
इससे पहले कि आपका दिलो-दिमाग दिन के तनाव और चिंताओं में उलझने लगे, सुबह-सुबह ध्यान कर लेना ही उपुक्त समय होता है।
सीधे भोजन से उठकर ध्यान में बैठ जाना कोई अच्छा ख़याल नहीं है, इसमें आप असहज महसूस कर सकते हैं और यह एकाग्रता में हस्तक्षेप करेगा।
यह जान लीजिए कि ध्यान एक यात्रा है : ध्यान का उद्देश्य मन को शांत करना, अंदरूनी शान्ति स्थापित करना, और इस तरह से एक उच्च आध्यात्मिक आयाम पर जाना है, जिसे अक्सर सरल रूप में होना कहते हैं।
हालांकि, इस बात का आभास होना चाहिए, कि योगियों और भिक्षुओं द्वारा अनुभव की जाने वाली चेतना और आत्मज्ञान के ऊँचे स्तर को प्राप्त करने के लिए वर्षों अभ्यास की जरूरत होती है।
ध्यान एक यात्रा है, एक पहाड़ पर चढ़ने जैसा, जहां आत्मज्ञान के मार्ग में प्रत्येक कदम आपको शिखर के करीब ले जाता है।
आरम्भ के चरणों में आपको ध्यान की गुणवत्ता के बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। अपने अभ्यास के अंत में जैसे-जैसे आप कोमल, सुखप्रद और अधिक शांति का अनुभव करते जायेंगे तो आप जानेंगे कि आपका ध्यान सफल रहा था।